दलित पैंथर/पैन्थर्स

आज हम जानेंगे कि दलित पैंथर क्या है? यह कब और क्यो बना और क्या इनके आंदोलन को सफलता मिली आदि संबन्धित जानकारी?

दलित पैंथर का उदय

  • सातवें दशक के शुरुआती सालों मे शिक्षित दलितों ने अनेक मंचो से दलित समुदास की पीड़ा और आक्रोश की अभिव्यक्ति की।
  • दलित हितो के हक की इस लड़ाई मे महाराष्ट्र मे 1972 मे दलित युवाओं ने “दलित पैंथर” नामक एक संगठन बनाया।
  • यह एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन है जो दलितों का प्रतिनिधित्व करने और उनके हक के लिए लड़ने के उद्देश्य से स्थापित हुआ था।
  • इस संगठन की स्थापना नामदेव ढ़साल और जे. वी. पवार द्वारा महाराष्ट्र मे की गयी थी।
  • आज़ादी के बाद से ही ये समुदाय अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ़ लड़ रहा था।
  • इनके द्वारा किए गए आंदोलन का एजेंडा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गो का एक संगठन खड़ा करना था।

दलित पैंथर आंदोलन की मुख्य माँगे

  1. आरक्षण के कानून और सामाजिक न्याय की नीतियों के अच्छी तरह से क्रियान्वयन की माँग।
  2. जाति आधारित असमानता और भौतिक संसाधनो के मामले मे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ना।
  3. दलित महिलाओ के साथ हो रहे दुर्व्ययहार का विरोध।
  4. भूमिहीन किसानो, मजदूरो और सारे वंचित वर्ग को उनके अधिकार दिलवाना।
  5. दलितो मे शिक्षा का प्रसार करना।
  6. दलितो के साथ हो रहे सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न को रोकना।

दलित पैंथर की गतिविधियाँ

  • इस आंदोलन मे पढे-लिखे दलित युवकों को एक मंच मिला जहाँ वे अपनी सर्जनशीलता का उपयोग प्रतिरोध की आवाज बनाकर कर सकते थे।
  • इस आंदोलन के दौरान ही अनेक साहित्यिक रचनायें लिखी गई। लेखको-कवियों ने रचनात्मक ढंग से अपनी लड़ाई लड़ी।
  • दलित पैंथर संगठन ने दलित अधिकारो की दावेदारी करते हुए “जन-कारवाई” का रास्ता अपनाया।

आंदोलन का परिणाम

  • दलित पैंथर के आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार ने 1989 मे एक व्यापक कानून बनाया।
  • इस कानून के अंतर्गत दलित पर अत्याचार करने वाले के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया।
  • आपातकाल (1975) के बाद के दौर मे इस संगठन ने कई चुनावी समझौते किए।
  • इस संगठन मे कई विभाजन भी हुए और यह राजनीतिक पतन का शिकार हुआ।
  • संगठन के पतन के बाद इसकी जगह बामसेफ (Backward and Minority Classes Employees Federation- BAMCEF) का निर्माण हुआ।