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द्रविड़ आंदोलन

January 24, 2021admin

आज हम जानेंगे कि द्रविड़ आंदोलन क्या था? इस आंदोलन के क्या कारण, माँगे और परिणाम थे? इसका प्रमुख नारा क्या था आदि संबन्धित जानकारी?

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द्रविड़ आंदोलन का उदय

  • यह आंदोलन भारत के क्षेत्रीय आंदोलन मे सबसे ताकतवर आंदोलन था।
  • आंदोलन का नारा था – ‘ उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन-दिन घटता जाए‘
  • द्रविड़ आंदोलन का नेतृत्व- तमिल सुधारक ई. वी. रामास्वामी नायकर ‘पेरियार’ ने किया था।
  • पेरियार ने 1944 मे द्रविड़ कषगम नामक पार्टी का गठन किया।
  • लेकिन कुछ वक्त के बाद 1949 में पेरियार के बेहद करीबी सीएन अन्‍नादुरै का उनके साथ मतभेद हो गया।
  • इसके बाद अन्‍नादुरै ने 17 सितंबर, 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) की स्‍थापना की।
  • पेरियार एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र की मांग कर रहे थे जबकि अन्‍नादुरै प्रथक राज्य की मांग कर रहे थे।

द्रविड़ आंदोलन की माँगे या कारण

  • 1953-54 मे डीएमके ने तीन-सूत्री आंदोलन के साथ राजनीति मे कदम रखा।
  • आंदोलन की प्रमुख माँगे :-
    1. कल्लाकुडी नामक रेलवे स्टेशन के नए नाम डालमियापुर को हटाकर स्टेशन क मूल नाम फिर से बहाल किया जाए।
    2. दूसरी माँग थी कि स्कूली पाठ्यक्रम मे तमिल संस्कृति के इतिहास को ज्यादा महत्व दिया जाए।
    3. तीसरी माँग राज्य सरकार के शिल्पकर्म शिक्षा कार्यक्रम को लेकर थी। संगठन का मानना था कि यह नीति समाज मे ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
    4. डीएमके हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने के भी खिलाफ थी।
  • 1965 के हिन्दी विरोधी आंदोलन की सफलता ने डीएमके को जनता के बीच और भी लोकप्रिय बना दिया।

आंदोलन के दौरान क्या हुआ?

  • 1973 मे स्कूलों मे हिन्दी को अनिवार्य करने पर भी इस क्षेत्र मे बहुत विरोध हुआ।
  • 1965 मे भी जब हिन्दी को देश की एकमात्र सरकारी भाषा बनाए जाने का ऐलान किया गया तो इसके विरोध में तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया।
  • हिन्दी के खिलाफ हुए इस आंदोलन के दौरान लोगो ने रेलवे स्टेशन से हिन्दी नामो को मिटा दिया और रेल-गाड़ियो के रास्ते को रोकने के लिए वे रेल की पटरी पर लेट गए।
  • इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कई लोगो की जान भी चली गयी।

आंदोलन के बाद की राजनीति

  • राजनीतिक आंदोलन के एक लंबे सिलसिले के बाद डीएमके को 1967 के विधानसभा चुनावो मे बड़ी सफलता हाथ लगी।
  • तब से लेकर आज तक तमिलनाडू की राजनीति मे द्रविड़ दलों का वर्चस्व कायम है।
  • डीएमके के संस्थापक सी. अन्नादुरै की मृत्यु ये दल दो भागो मे बट गया।
  • इसमे एक दल मूल नाम यानि डीएमके को लेकर आगे चला जबकि दूसरा दल खुद को ऑल अन्ना द्रमुक कहने लगा।

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