Premchand ka jivan Parichay- मुंशी प्रेमचंद जीवनी

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आज हम हिन्दी साहित्य के एक विख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद के जीवन (premchand ka jivan parichay) के बारे मे जानेंगे। उन्होने मात्र 13 वर्ष की उम्र से ही उन्होने लिखना शुरू कर दिया था और उनका ये साहित्यिक सफर मरते दम तक उनके साथ रहा।

👉 जीवन परिचय

हिन्दी साहित्य में ‘उपन्यास-सम्राट’ माने जाने वाले प्रेमचंद जी का जन्म बनारस के लमही गाँव मे सन 1880 मे हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था।

उनके पिताजी का नाम अजायब राय था। और वो एक डाकखाने में काम करते थे। उनकी माता आनंदी देवी एक सुंदर-सुशील महिला थी। जब ये 8 वर्ष के थे तभी इनकी माता का देहांत हो गया। माता की मृत्यु के दो वर्ष के बाद ही इनके पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया।

मातृत्व-सुख से वंचित प्रेमचंद का बचपन बहुत अभावों मे बीता था। जब ये पंद्रह वर्ष के हुए तब इनके पिताजी ने इनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहांत हो गया।

वे शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे। बाद में असहयोग आंदोलन मे सक्रिय भाग लेने के कारण उन्होने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। आजीविका एवं देश सेवा की भावना से प्रेरित होकर वे लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए।

👉 शिक्षा

बचपन से ही प्रेमचंद जी की रुचि पढ़ने मे बहुत थी और वो बड़े होकर एक वकील बनना चाहते थे। लेकिन जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण उनकी शिक्षा बी. ए. तक ही हो पायी थी। बी. ए. पास करने के बाद ये शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

👉 रचनाएँ

प्रेमचंद जी की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित की गई है। इनके अतिरिक्त उनके

  • सेवासदन
  • प्रेमाश्रय
  • रंगभूमि
  • कायाकल्प
  • निर्मला
  • गबन
  • कर्मभूमि
  • गोदान आदि प्रमुख उपन्यास है।
  • उन्होने हंस
  • जागरण
  • माधुरी आदि प्रमुख पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था।

प्रेमचंद जी का नाम कथा साहित्य मे तो प्रतिष्ठित था ही। इसके अतिरिक्त निबंध एवं अन्य प्रकार के गद्य-लेकन के द्वारा भी उन्होने प्रचुर मात्र में साहित्य वृद्धि की।

शायद बहुत कम लोग ही ये बात जानते हैं कि विख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद अपनी महान् रचनाओं की रूपरेखा पहले अंग्रेजी में लिखते थे और उसके बाद उसे हिन्दी तथा उर्दू मे प्रकाशित करते थे।

👉 व्यक्तित्व

प्रेमचंद जी का जीवन बहुत ही सादा और सरल था। जीवन मे अनेक कठिनाइयाँ आने के बाद भी उन्होने कभी हार नही मनी। वे गरीबो और पीड़ितों की हमेशा सहायता करते थे। प्रेमचंद जी के अनुसार साहित्य सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम था। इसीलिए उन्होने गाँव और शहर के परिवेश को गहराई से देखा और जिया।

उनके उसी जीवन की सूक्ष्मता अभिव्यक्ति भी उनके कथा साहित्य में मिलती है। उन्होने किसानो और मजदूरों की दयनीय स्थिति, दलितो का शोषण, समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आंदोलन आदि विषयों को अपनी रचनाओं का मूल विषय बनाया। उन्हें इस दिशा मे पूर्ण सफलता भी मिली है।

👉 लेखन शैली

प्रेमचंद जी का कथा-साहित्य संसार बहुत व्यापक है। उन्होने न केवल कहानी से बल्कि पशु-पक्षियों के माध्यम से भी अद्भुत आत्मीयता प्रकट करते हुए मानव समाज को झकझोरा है। बड़ी से बड़ी बात को भी बड़ी ही सरल भाषा मे सीधे और संक्षेप में कहने की कला मे प्रेमचंद जी माहिर थे।

प्रेमचंद जी ने अपनी रचनाओ मे सरल, सजीव एवं मुहावरेदार भाषा को उचित स्था दिया है। उन्होने अरबी, फारसी और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का कुशलतापूर्वक खुलकर प्रयोग किया है। उनके इस प्रयोग से हिन्दी कथा-कहानी को एक नया आयाम मिला है।

👉 देहावसान

1936 में इस महान कथाकार की देह पंचतत्व मे विलीन हो गयी।